अंतरात्मा कर ले आत्महत्या

पत्थरो की भीड़ है इंसान है कहाँ । बईमानों की भीड़ में ईमान है कहाँ ।। मुर्दो की बस्ती जिंदा इंसान है कहाँ । झूठो की बस्ती मक्कार सब यहाँ ।। एकला चलो अब संभव कहाँ। भीड़ से हटकर तेरा वजूद अब कहाँ ।। आराम से जीना है तो जमीर बेच दो । भीड़ से … Continue reading अंतरात्मा कर ले आत्महत्या